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हिंदी कहानियां - भाग 217

जब बच्चे बने टीचर


जब बच्चे बने टीचर रोज की तरह रमा इंटरनेशनल स्कूल के बच्चे आज भी स्कूल पहुंच रहे थे, पर उनके चेहरे पर स्कूल जाने का तनाव नहीं, बल्कि अलग तरह की उत्सुकता थी। आज उनके प्रिंसिपल बेदी सर ने उन्हें पूरी छूट दी थी। एक दिन पहले उन्होंने एसेंबली में भाषण देते हुए कहा था,‘‘कल 14 नवंबर है, यानी बाल दिवस। आप सब समझते हैं कि स्कूल में बहुत बंदिश होती है। आप अपने मन की नहीं कर सकते। पर कल आप लोगों को पूरी छूट है। न स्कूल ड्रेस का डर न टीचर्स की डांट। कल हम सब कुछ अलग करेंगे। मुझे उम्मीद है, यह अलग वाली बात आप लोगों को पसंद आएगी।’’ अगले दिन सुबह सारे बच्चे एसेंबली के लिए प्लेग्राउंड में इकट्ठे होने लगे। कुछ बच्चे जो काफी अमीर थे, वे तो ब्रांडेड सामान की पूरी दुकान नजर आ रहे थे। धीरे-धीरे सारा प्लेग्राउंड बच्चों से भर गया। रंग-बिरंगी तितलियों की तरह सारे बच्चे इधर-उधर भाग रहे थे, दोस्तों से मिल रहे थे। तभी घोषणा हुई कि प्रिंसिपल बेदी सर आ रहे हैं। सारे बच्चे तुरंत अपनी-अपनी क्लास की लाइन में आकर खड़े हो गए। बेदी सर माइक के सामने आए और बोले, ‘‘आज का दिन आप लोगों का है, मतलब बच्चों का दिन है। आज तक आप लोग इस स्कूल में पढ़ते रहे हैं और अपने टीचर्स से आपको शिकायत भी रही होगी। चलो, आज एक नया खेल खेलते हैं। आज आप लोग टीचर बनेंगे।’’ ‘‘सर, अगर हम लोग टीचर होंगे, तो बच्चे कौन बनेंगे, जिन्हें हम पढ़ाएंगे?’’ एक बच्चे की आवाज आई। बेदी सर मुस्करा दिए। फिर बोले, ‘‘मैंने भी यही सोचा था। फिर एक आइडिया आया। आप लोग चिंता न करें। आपके स्टूडेंट थोड़ी देर में आने वाले हैं।’’ जब तक बेदी सर अपनी बात पूरी करते, तब तक स्कूल की चार बसें आकर रुकीं। उनके गेट खुले, तो उनमें से कुछ बच्चे उतरने लगे। हिंदी वाले सर के साथ क्लास मॉनिटर्स आगे बढ़े। उनके हाथ में टोकरियां थीं, जिनमें गुलाब के फूल थे। सर आगे बढ़कर एक-एक करके सभी बच्चों की शर्ट पर गुलाब के फूल लगाने लगे।  स्कूल के बच्चों की नजरें इन नए बच्चों पर से हट ही नहीं रही थीं। सारे बच्चे गरीब लग रहे थे। किसी के पैर में पुराने जूते थे, तो कोई चप्पल में था। उनके कपड़े वैसे थे, जैसे वे अपने घर में भी नहीं पहनते थे। प्रिंसिपल सर बच्चों को गौर से देख रहे थे। उनके मन की बात वे समझ गए।  उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘‘कुछ दिनों पहले  मुझे एक अनाथालय में जाने का मौका मिला। वहां मैं इन बच्चों से मिला। ये वो बच्चे हैं, जिनको आप लोगों की तरह माता-पिता का प्यार नहीं मिला। इन्हें कोई सुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करता, कोई इनके लिए स्कूल का लंच पैक नहीं करता। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये स्कूल नहीं जा पाते हैं और अपने आश्रम में ही आने वाले टीचर्स से पढ़ते हैं। पर इन्हें पढ़ाई में कमजोर मत समझना। इनमें से कुछ बच्चों ने मुझसे कहा कि सर हम भी देखना चाहते हैं, स्कूल कैसा होता है, और वहां पढ़ाई कैसे होती है। इसीलिए मैंने आज इन बच्चों को यहां आमंत्रित किया है। आज ये बच्चे हमारे स्टूडेंट हैं और आप लोग अपने टीचर्स के साथ मिलकर इन्हें पढ़ाएंगे ताकि स्कूल में पढ़ने का इनका सपना भी पूरा हो। मैं बस आप सबसे यही चाहता हूं कि अनाथालय से आए बच्चों को यह महसूस करा दो कि वे पराए नहीं, हमारे अपने हैं। बाल दिवस उन बच्चों के लिए भी महत्वपूर्ण है।’’ इसके बाद एसेंबली खत्म हो गई और बच्चे अपनी-अपनी क्लास की ओर चले, पर उन बच्चों की कहानी सुनकर ज्यादातर बच्चों के चेहरे गंभीर हो गए थे। जब वे अपनी क्लास में पहुंचे तो उन्हें अनाथालय के बच्चे सीटों पर बैठे दिखाई दिए। ऐसी ही एक क्लास में  खड़े टीचर ने कहा, ‘‘कुछ बच्चे जो पढ़ाना चाहते हैं, वो मेरे पास आ जाएं। बाकी बच्चे इन बच्चों के साथ बैठ जाएं और पढ़ाई में सहयोग करें।’’ एक-दो घंटे बाद पता ही नहीं चल रहा था कि ये बच्चे एक- दूसरे को जानते ही नहीं थे। सब एक-दूसरे से खुल गए थे। पढ़ाई में एक-दूसरे का सहयोग कर रहे थे। पता नहीं कैसे स्कूल के बच्चों के मन में यह भावना आ गई थी कि अनाथालय के बच्चों को नहीं लगना चाहिए कि वे पराए हैं। लंच टाइम में स्कूल की तरफ से अनाथालय से आए बच्चों के लिए लंच आया, पर स्कूल के बच्चों ने अपना टिफिन भी उन बच्चों के साथ शेयर किया। ऐसे ही हंसते-खेलते स्कूल का टाइम बीता और छुट्टी का समय आ गया। बच्चों को आदेश था कि छुट्टी से पहले फिर से सब प्लेग्राउंड में इकट्ठे होंगे। इस बार प्लेग्राउंड में सारे बच्चे एक साथ आए। स्कूल के बच्चे यह देखकर चौंक गए कि उनके माता-पिता को भी प्रिंसिपल सर ने बुला रखा था। सर ने बच्चों को देखकर पूछा, ‘‘बोलो बच्चो, आज का दिन कैसा लगा?’’ ‘‘बहुत बढ़िया सर। इन बच्चों के साथ बहुत मजा आया।’’ राघव जो एक बहुत बड़े बिजनेसमैन का बेटा था, वह आगे बढ़कर बोला। ‘‘और आप लोगों को कैसा लगा हमारा स्कूल?’’अब सर ने अनाथालय से आए बच्चों से पूछा। ‘‘सर हमारा सपना पूरा हो गया। स्कूल में पढ़ने में बड़ा मजा आया। काश! हम रोज ऐसे पढ़ पाते।’’कहते-कहते अनाथालय से आया अमित रो पड़ा। ‘‘तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा।’’ मुस्कराते हुए प्रिंसिपल सर बोले, ‘‘मैंने अपने मैनेजमेंट से बात कर ली है। अब से हमारे स्कूल में दोपहर बाद भी आप लोगों के लिए अलग से स्पेशल क्लास हुआ करेगी। आप लोग यहां पढे़ंगे और आगे बढ़ेंगे।’’ ‘‘हुर्रे।’’ राघव खुशी से चिल्ला पड़ा। वह भूल गया कि वह स्कूल में, और वह भी प्रिंसिपल सर के सामने है। सारा मैदान प्रिंसिपल सर की घोषणा के बाद तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सारे बच्चे अपने माता-पिता के पास गए और उनसे कुछ बात करने लगे। उनकी बात सुनकर वे मुस्काए और उनका सिर हां में हिलने लगा। बस फिर क्या था! देखते ही देखते मैदान में अजीब सा नजारा दिखाई देने लगा। स्कूल के लड़कों में से किसी ने अपनी शर्ट उतारी, तो किसी ने अपनी टी-शर्ट, उन्होंने अपनी शर्ट और टीशर्ट अनाथालय से आए बच्चों को जबरदस्ती पहना दी।  यह सारा नजारा देखकर उनके माता-पिता भी मुस्काए बिना न रह सके। प्रिंसिपल सर के चेहरे पर भी संतोष की मुस्कान थी। बाल दिवस पर जो बात वह अपने बच्चों को सिखाना चाहते थे, वह उन्होंने अच्छे से सीख ली थी।

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